History of OSI model (ओएसआई मॉडल का इतिहास हिंदी में)

OSI (Open Systems Interconnection) मॉडल का इतिहास एक नंतरात्मक प्रक्रिया है, जो नेटवर्क कम्युनिकेशन को सुधारने और संवाद सिस्टमों के बीच समकृमता सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। इसे आंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) ने बनाया और विकसित किया था।

1. आविष्कार और विकास: OSI मॉडल की शुरुआत 1977 में हुई थी, जब ISO ने इसे विकसित करने का निर्णय लिया। इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न नेटवर्क तंतुत्वों के बीच संवाद को साझा करने के लिए एक सामान्य रूपरेखा तैयार करना था।

2. मॉडल का निर्माण: इस मॉडल का निर्माण सात परतों में हुआ, जो विभिन्न स्तरों को प्रतिनिधित्व करती हैं और उन्हें स्वतंत्रता से विकसित और अपनाया जा सकता है। इसमें प्रत्येक परत ने विशिष्ट कार्यों और जिम्मेदारियों को सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया गया है।

3. प्रमुख रूपरेखा का तुलनात्मक अध्ययन: OSI मॉडल ने विभिन्न नेटवर्क प्रोटोकॉल्स और तंतुत्वों को एक सामान्य तंतुत्व में संगठित किया, जिससे सिस्टमों को संगतता में मदद हुई और इंटरओपरेबिलिटी बढ़ी।

4. व्यापक अपनाये जाने का समय: OSI मॉडल को व्यापक रूप से अपनाया जाने में कुछ समय लगा, और इसे इंटरनेट प्रोटोकॉल्स की बजाय अधिक प्रचलित नहीं होने का कारण बना रहा। इंटरनेट परम्परागत रूप से अधिक सक्रिय हो गया था, जिससे एक दोस्ताना मॉडल, TCP/IP मॉडल, प्रचलित हुआ जो कि आज भी व्यापक रूप से इस्तेमाल हो रहा है।

5. महत्वपूर्ण योगदान: हालांकि OSI मॉडल ने सीधे प्रोटोकॉल्स को परिभाषित नहीं किया और इंटरनेट प्रोटोकॉल्स को प्रचलित नहीं किया गया, यह नेटवर्क डिज़ाइन और विकसन के लिए महत्वपूर्ण सामग्री प्रदान करता है।

6. वर्तमान स्थिति: OSI मॉडल का आधार वर्तमान समय में भी नेटवर्क डिज़ाइन और प्रोटोकॉल विकसन में महत्वपूर्ण है, लेकिन इंटरनेट परम्परागत मॉडलों का भी उपयोग हो रहा है।

इस प्रकार, OSI मॉडल ने नेटवर्क डिज़ाइन और संवाद सिस्टमों को समझने के लिए एक सामान्य रूपरेखा प्रदान की और इंटरनेट प्रोटोकॉल्स की उत्पत्ति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

Introduction of OSI model (हिंदी में ओएसआई मॉडल का परिचय)

OSI (Open Systems Interconnection) मॉडल एक संवाद तंत्र या कंप्यूटिंग सिस्टम के कार्यों को सात अभिव्यक्ति परतों में मानकीकृत करने वाला एक संवादी रूपरेखा है। ये परतें विभिन्न प्रोटोकॉल और तकनीकों को एक नेटवर्क में उपक्रमण करने के तरीके को व्याख्यात्मक रूप से परिभाषित करती हैं। इस मॉडल को अंतरक्रियाशीलता और विभिन्न संवाद सिस्टमों की समझ बढ़ाने के लिए आईएसओ (International Organization for Standardization) द्वारा विकसित किया गया था।

ओएसआई मॉडल की सात परतें, सबसे निचे से सबसे ऊपर तक, निम्नलिखित हैं:

  1. भौतिक परत (Physical Layer): इस परत का काम उपकरणों के बीच भौतिक कनेक्शन के साथ है। इसने केबल, कनेक्टर्स, और नेटवर्क इंटरफेस कार्ड्स जैसे हार्डवेयर तत्वों को परिभाषित किया है। यह भौतिक माध्यम पर कच्चे डेटा बिट्स के प्रेषण और प्राप्ति के साथ संबंधित है।
  2. डेटा लिंक परत (Data Link Layer): यह दो सीधे जुड़े नोडों के बीच एक सुरक्षित लिंक बनाने के लिए जिम्मेदार है। यह फ्रेमिंग, पता लगाना, और त्रुटि का पता लगाने के साथ संबंधित है। डेटा लिंक परत प्रोटोकॉल का उदाहारण इथरनेट है।
  3. नेटवर्क परत (Network Layer): यह परत उपकरणों के बीच पैकेट्स की मार्गदर्शिका करने के लिए जिम्मेदार है। यह विभिन्न नेटवर्कों के बीच पैकेट्स की मार्गदर्शिका करने के लिए जिम्मेदार है। इसने लॉजिकल पता लगाना, जैसे कि आईपी पते, के साथ संबंधित है। इस परत पर राउटर्स काम करते हैं।
  4. ट्रांसपोर्ट परत (Transport Layer): यह समाप्त-से-समाप्त संवाद का प्रबंधन करता है और सुनिश्चित करता है कि डेटा में कोई त्रुटि नहीं है और यह सही क्रम में पहुँचता है। यह फ्लो कंट्रोल और त्रुटि सुधार की सेवाएं प्रदान करता है। टीसीपी (ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल) और यूडीपी (यूज़र डेटाग्राम प्रोटोकॉल) इस परत पर काम करते हैं।
  5. सत्र परत (Session Layer): एप्लिकेशनों के बीच सत्र या कनेक्शन का प्रबंधन करती है। यह सत्र स्थापित, बनाए रखती है, और समाप्त करती है और सुनिश्चित करती है कि डेटा उपकरणों के बीच समकृम है। यह सुरक्षा और प्रमाणीकरण के साथ संबंधित भी है।
  6. प्रस्तुतीकरण परत (Presentation Layer): यह डेटा को अनुप्रयुक्तता परत और निचले परतों के बीच अनुवाद करने के लिए जिम्मेदार है। यह डेटा स्वरूपित करने, एन्क्रिप्शन करने, और संपीड़ित करने के साथ संबंधित है, सुनिश्चित करते हुए कि डेटा अनुप्रयुक्त रूप में एप्लिकेशन परत के लिए प्रस्तुत हो।
  7. एप्लिकेशन परत (Application Layer): सबसे ऊपरी परत जो सीधे अंतयवस्था एप्लिकेशनों के साथ संवाद करती है। यह एप्लिकेशन को नेटवर्क सेवाएं प्रदान करती है और सॉफ़्टवेयर कार्यक्रमों के बीच संवाद को संभालती है। इस परत पर प्रोटोकॉल्स जैसे कि एचटीटीपी (एचाइपरटूटी प्रोटोकॉल), एफटीपी (फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल), और एसएमटीपी (इलेक्ट्रॉनिक मेल ट्रांसफर प्रोटोकॉल) काम करते हैं।

ओएसआई मॉडल एक अभिविकल्पित रूपरेखा है, और हाल के इंटरनेट प्रोटोकॉल्स का विवरण करने के लिए आमतौर पर उपयोग होने वाले TCP/IP मॉडल की तुलना में इस्तेमाल किया जाता

Advantages & disadvantages of OSI model (ओएसआई मॉडल के फायदे और नुकसान हिंदी में)

Advantages :

  1. संगतता (Interoperability): OSI मॉडल ने विभिन्न नेटवर्क तंतुत्वों को संगतता प्रदान करने के लिए एक सामान्य रूपरेखा प्रदान की है, जिससे सिस्टमों के बीच संवाद को सुनिश्चित करना आसान होता है।
  2. संवाद को विभागीय करना (Modularity): OSI मॉडल ने संवाद को सात परतों में विभाजित किया है, जिससे डिज़ाइन और विकसन को अधिक विभागीय बनाता है और हर परत को स्वतंत्रता से अपनाया जा सकता है।
  3. प्रोटोकॉल विवरण: यह मॉडल ने प्रत्येक परत को विशिष्ट कार्यों और जिम्मेदारियों के साथ जोड़ने के लिए प्रोटोकॉल्स का स्पष्ट विवरण प्रदान किया है, जिससे प्रोटोकॉल्स को अधिक सुरक्षित रूप से विकसित किया जा सकता है।
  4. उच्च स्तर की सुरक्षा: अलग-अलग परतें अपने-आप में संबंधित हैं, लेकिन एक दूसरे से अलग होती हैं, जिससे सुरक्षा बढ़ती है।

Disadvantages:

  1. विभाजन की समस्या: OSI मॉडल ने बहुत सारे परतों में संवाद को विभाजित किया है, जिससे उपयोगकर्ताओं को इसे समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।
  2. प्रचलन में कमी: OSI मॉडल का प्रचलन अधिकतम नहीं होता है और इंटरनेट परम्परागत मॉडलों का अधिक प्रचलन है, जैसे कि TCP/IP मॉडल।
  3. ज्ञान की आवश्यकता: इसे समझने के लिए उपयोगकर्ताओं को नेटवर्किंग और प्रोटोकॉल्स के बारे में उच्च स्तर का ज्ञान होना चाहिए, जो कई बार नए उपयोगकर्ताओं के लिए मुश्किल हो सकता है।
  4. अभिशिक्षा की आवश्यकता: इस मॉडल की अच्छी समझ के लिए अधिकांश उपयोगकर्ताओं को नेटवर्किंग की अच्छी जानकारी और अभिशिक्षा की आवश्यकता होती है।

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